कांवड़ यात्रा के दौरान के नियम

सावन के महीनें में कई व्रत और त्योहार की शुरुआत हो चुकी है। वहीं पर कांवड़ यात्रा भी जारी है। वैसे तो कांवड़ियों के लिए कांवड़ यात्रा के दौरान कई नियम होते है जिनका पालन उन्हें करना होता है। आज हम आपको कांवड़ यात्रा से जुड़े एक और नियम के बारे में जानकारी दे रहे है जो जरूरी है। यात्रा के दौरान कांवड़ियों को एक खास पेड़ यानि गूलर के पेड़ के नीचे से गुजरने की मनाही होती है। इस पेड़ के नीचे से गलती से भी गुजर जाए तो काफी नुकसान होता है। कांवड़ यात्रा भी खंडित मानी जाती है। चलिए जानते है गूलर का पेड़ और कांवड़ियों के बीच का संबंध।
पूजनीय होता है गूलर का पेड़
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, गूलर के पेड़ को पूजनीय माना जाता है। कहते है इसका संबंध शुक्र ग्रह से जोड़कर देखा जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, इस पेड़ का संबंध यशराज कुबेर से भी है. जब कांवड़िये इस पेड़ के नीचे से गुजरते हैं तो उनके पत्ते या फल उनके पैरों के नीचे आ जाते हैं, जिससे भगवान शिव और अप्रसन्न होते हैं। भूलकर ही कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़ियों को इस पेड़ के नीचे से नहीं गुजरना चाहिए। इतना ही नहीं यह भी माना जाता है कि, कांवड़ियों को गूलर के पेड़ के नीचे से गुजरने की मनाही होती है क्योंकि गूलर के फल में असंख्य जीव-जंतु होते हैं।
अगर किसी कांवड़िए का पैर इसके फल पर पड़ जाता है, तो उन्हें उन जीव-जंतुओं की हत्या का पाप लगता है और उनकी कांवड़ यात्रा खंडित हो जाती है। पाप लगने के बाद जल शिव पर चढ़ने के लायक नहीं रहता और कांवड़ियों को अपनी यात्रा दोबारा शुरू करनी पड़ती है। गूलर के पेड़ में नकारात्मक और बुरी ऊर्जाओं का वास बताया जाता है।
कांवड़ यात्रा खंडित हो जाएं तो है नियम
कहां जाता है, कांवड़ यात्रा से जुड़े कई नियम होते है जिसमें अगर किसी भी नियम की वजह से कांवड़ यात्रा खंडित हो जाती है तो कांवड़ियों को जल वहीं किसी पेड़ के नीचे विसर्जित कर देना चाहिए। साथ ही भगवान शिव से क्षमा मांग कर 108 शिव मंत्रों का जाप करना चाहिए,उसके बाद ही पुनः अपनी यात्रा की शुरुआत करनी चाहिए। इसके अलावा वैज्ञानिक कारण यह भी है कि, इस पेड़ पर असंख्य जीव और कीट रहते हैं, इस पेड़ के नीचे से गुजरने पर हो सकता है कांवड़ियों को कोई स्किन एलर्जी हो जाए। यही कारण है कि कावड़ियों को गूलर के पेड़ नीचे से गुजरने को मना किया जाता है।