
बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के चेयरमैन तुहिन कांत पांडे ने गुरुवार को कहा कि सेबी इक्विटी डेरिवेटिव्स कॉन्ट्रैक्ट्स का मैच्योरिटी पीरियड बढ़ाने के तरीकों पर विचार कर रही है। बीते कुछ वर्षों में भारतीय शेयर बाजार में तेजी से डेरिवेटिव्स ट्रेडिंग बढ़ी है और बड़ी संख्या में रिटेल निवेशक इसमें भाग ले रहे हैं। सेबी जोखिम को कम करने के लिए पहले भी डेरिवेटिव्स एक्सपायरी और लॉट साइज की संख्या में बदलाव कर चुका है, जिससे देश में डेरिवेटिव्स ट्रेडिंग करना पहले के मुकाबले महंगा हुआ है।
मार्केट रेगुलेटर चीफ ने आगे कहा कि सेबी अब मिनिस्ट्री ऑफ कॉर्पोरेट अफेयर्स और स्टॉक एक्सचेंजों के साथ मिलकर एक विनियमित प्लेटफॉर्म स्थापित करेगा, जिसमें सार्वजनिक होने की योजना बना रही गैर-सूचीबद्ध कंपनियों के बारे में विश्वसनीय जानकारी होगी। इस तरह के सिस्टम से निवेशकों के लिए प्री-आईपीओ कंपनियों में निवेश करने का निर्णय लेने से पहले उनके प्रदर्शन पर नजर रखना आसान हो जाएगा।
बाजार नियामक का यह कदम भारतीय बाजारों में डेरिवेटिव और आईपीओ निवेश की बढ़ती मांग के साथ निवेशक सुरक्षा के संतुलन पर उसके फोकस को दर्शाता है। इस सप्ताह की शुरुआत में, सेबी ने एक कंसल्टेशन लेटर जारी किया था, जिसमें बहुत बड़ी कंपनियों के लिए अपने आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) लॉन्च करने के लिए आसान नियमों का प्रस्ताव दिया गया है, जिसमें न्यूनतम सार्वजनिक निर्गम आवश्यकताओं में ढील और सार्वजनिक शेयरधारिता मानदंडों को पूरा करने के लिए अधिक समय शामिल है।
वर्तमान में, बहुत बड़ी कंपनियों को शेयर बाजार में सूचीबद्ध होने पर अपने शेयरों का एक बड़ा हिस्सा जनता को बेचना पड़ता है। इससे अकसर बहुत बड़े आईपीओ सामने आते हैं, जिन्हें एक बार में संभालना बाजार के लिए मुश्किल होता है। सेबी ने अब एक नई प्रणाली का सुझाव दिया है जो कंपनियों पर एक साथ इतने सारे शेयर बेचने के तत्काल दबाव को कम करेगी। हालांकि, उन्हें समय के साथ धीरे-धीरे सार्वजनिक शेयरधारिता नियमों का पालन करना होगा।
एक अन्य प्रस्ताव 5,000 करोड़ रुपए से अधिक के आईपीओ में खुदरा निवेशकों के लिए आरक्षित हिस्सेदारी को कम करने का है। ऐसे बड़े निर्गमों में छोटे निवेशकों के लिए वर्तमान 35 प्रतिशत के स्थान पर केवल 25 प्रतिशत शेयर ही अलग रखे जाएंगे।




